50 Years of Emergency : साल 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आज इस आपातकाल को 49 साल पूरे हो गए। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल के 49 साल पूरे होने पर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया।
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भाजपा ने आपातकाल का मुद्दा तब उठाया, जब विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर संविधान के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया। पीएम मोदी के अलावा भाजपा के सभी शीर्ष नेताओं ने आपातकाल की आलोचना की। आखिरकार आपातकाल को भाजपा ने भारतीय लोकतंत्र में एक काला क्यों अध्याय बताया? आपातकाल से जुड़ी कुछ अहम मुद्दों पर यहां जानेंगे।
किस परिस्थिति में लगाया गया आपातकाल
आपातकाल का मुख्य कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को बताया जाता है। उस फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव प्रचार अभियान में कदाचार का दोषी करार दिया गया था। दरअसल, 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी बड़े अंतर से जीती थीं। पार्टी को भी बड़ी जीत दिलाई थी। प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने इंदिरा की जीत पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया। राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है। मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया।
इंदिरा गांधी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम देश में कई ऐतिहासिक घटनाओं की वजह बना। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद समय था। 25 जून 1975 को घोषणा के बाद 21 मार्च 1977 तक यानी की करीब 21 महीने तक भारत में आपातकाल लागू रहा।
आपातकाल से कैसे प्रभावित हुआ देश (50 Years of Emergency)
आपातकाल के दौरान देशभर में चुनाव स्थगित हो गए थे।
आपातकाल की घोषणा के साथ हर नागरिक के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। लोगों के पास न तो अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार था, न ही जीवन का अधिकार।
पांच जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थीं। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण जैसे बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया।
इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डाला गया था कि जेलों में जगह ही नहीं बची।
प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी रख दिये गये थे। उस सेंसर अधिकारी की अनुमति के बिना कोई खबर छप ही नहीं सकती थी। अगर किसी ने सरकार के खिलाफ खबर छापी तो उसे गिरफ्तारी झेलनी पड़ी।
आपातकाल के दौरान प्रशासन और पुलिस ने लोगों को प्रताड़ित किया, जिसकी कहानियां बाद में सामने आईं।