देहरादून/नैनीताल: NAINITAL HIGH COURT उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बड़ा झटका दिया है. हाईकोर्ट ने भूतपूर्व सैनिकों को केवल एक बार आरक्षण का लाभ देने संबंधी राज्य सरकार के 22 मई 2020 के शासनादेश को रद्द कर दिया है. मामले की सुनवाई वरिष्ठ न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में हुई थी.
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कोर्ट के इस आदेश के बाद अब पूर्व सैनिकों को हर बार आरक्षण मिलेगा
नैनीताल हाईकोर्ट (NAINITAL HIGH COURT) ने राज्य के पूर्व सैनिकों को राहत देते हुए सरकारी नौकरी में आरक्षण देने वाले सरकार के शासनादेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट के इस आदेश के बाद अब पूर्व सैनिकों को हर बार आरक्षण मिलेगा. बता दें कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भूतपूर्व सैनिकों को केवल एक बार आरक्षण का लाभ देने संबंधी राज्य सरकार के 22 मई 2020 के शासनादेश को ”उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रित और भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम 1993” के खिलाफ मानते हुए रद्द कर दिया है. यह अधिनियम उत्तराखंड में भी लागू है.
मामले के अनुसार राज्य सरकार ने 22 मई 2020 को शासनादेश जारी कर कहा था कि जिस पूर्व सैनिक को एक बार राज्य में सरकारी नौकरी में आरक्षण मिल जायेगा तो वो दोबारा आरक्षण का अधिकारी नहीं होगा. इस जीओ को पूर्व सैनिक दिनेश कांडपाल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
याचिकाकर्ता के अनुसार उत्तराखंड सरकार को 22 मई 2020 को शासनादेश ”उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रित और भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम 1993” के खिलाफ है. क्योंकि उक्त अधिनियम में भूतपूर्व सैनिकों को केवल एक बार आरक्षण का लाभ देने का उल्लेख नहीं है और यही अधिनियम उत्तराखंड में भी लागू है. इस आधार पर हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के 22 मई 2020 के शासनादेश को निरस्त कर दिया है.
पूर्व सैनिकों के प्रति असंवेदनशील चेहरा हुआ उजागर
वहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना है कि पूर्व सैनिकों के प्रति भाजपा सरकार के असंवेदनशील रवैये को आज नैनीताल उच्च न्यायालय ने करारा जवाब दिया हैं.
कांग्रेस का कहना है कि यह उन वीरों का अपमान भी था, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. भाजपा की डबल इंजन सरकार की असली मानसिकता एक बार फिर सामने आ गई है. यह सरकार केवल जुमलों और फोटो खिंचवाने तक सीमित है, जब बात सैनिकों के अधिकारों की आती है तो यह सरकार पीछे हट जाती है.
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